कबिता

ई कथा दहेजक बंद करू ,
ई प्रथा दहेजक बंद करू ,
हे जुनि बेचू अहाँ बेटा के,
ई नशा दहेजक बंद करू ||

एहि संस्कार के ताख धरु ,
यौ लाज धरु,यौ धाख धरु ,
ई संस्कार नहिं विशधर थिक ,
एहि विशधर केर संहार करू ||

ई कोंख बेचई केर धंधा थिक ,
ई नीक बात नहिं, फंदा थिक ,
अछि नाम संस्कार केर श्राद्ध- जकर ,
ओ बनियौटी ई धंधा थिक ||

दू भरि सोन आ फटफटिया खातिर
धिया सिया सन जरा देलउँ ,
अपराधी बनि माहुर दs कs ,
देवी केर हत्या करा देलउँ ||

ओ पुरुष की जे नहिं बूझि सकल ,
बेटी ,देवी केर रूप सकल ,
दू गोट अर्थ के पाबए लेल ,
नर,पाग,दोपटा बिसरि चुकल ll

यौ धरू लाज सम्मान करू ,
देवी सन बेटीक मान करू ,
हे जुनि बेचू अहाँ बेटा के ,
ई प्रथा दहेजक बंद करू ll

ई नशा दहेजक बंद करू ,
ई कथा दहेजक बंद करू ||

रचनाकार -मनीष झा जी

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