कबिता

‪#‎प्रेम‬-बिहनि-कथा

- हे गै नितु, ऊ चश्माबला छँडा जे छाता लऽक' बरीआती अएलौ । से तँ हम सोचैत रही जे जनु ओकरा डिस्प्रेसनक' समस्या छै ।
- हँ गै शुरुमे तँ हमहुँ वैह सोचैत रही । कारण रातिके छाताके कोन काज ?
- मुदा नितु, जब जे पानि पऽरऽ लगलौ से तँ कहै छीयौ हम ओकरे छातीसँ सटि गेलीयौ आ छातामे नुकाक' स्वमवर देखऽ लगलीयौ ।
- गै ऊ केनाक बुझैत रहै जे पानि परैबला छै ?
- वैह प्रश्न तँ हम पानि छुटलाक बाद ओकरासँ पुछलीयै, तँ ओ कहलक जे हमर भैया चोरा-चोराक' छालही, डारही खूब खेने छल, तँए! बुझल छल जे पानि परत ।
- अच्छा, आँई गै तब तँ तोहर ई आशिक दिमागक' तेजे निकललौँ !
- फेर कहि दै छीयौ । हमरा खौँझो नै ।
- एँह तँ ओकर छातीसँ किए सटल रहे ।
- ओह !
®नरायण मधुशाला


✔ @[480690508763222:]

#अपन_मिथिला

0 टिप्पणियाँ Blogger 0 Facebook

 
अपन मिथिला © 2016.All Rights Reserved.

Founder: Ashok Kumar Sahani

Top