कबिता


प्रतिगिया कैने छलौ हम,भेटव जरुर
माफ करब ! जवना आगु भेलौ मजबुर

समयक खेल छै सब,धैर्यता राखु अहाँ
एक दिन घुईम आयब,हम छि नै दुर

अहाँ ऐनामे देखु,आखिंमे बसल छि हम
अहाँके सोझे छि,मन करु नै सकनाचुर

प्रेम झुकल नै अछी,भल्हे मैइर गेल है
संकोच नै करु,प्रेम अछी नै कोनो कसुर

बुझैत दुनियाके संग आयब हम ,अहाँ
माङ्ग सजौने रहब,भर आयब सिन्दुर

(सरल वार्णिक--१६)

सोगारथ यादव

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