कबिता

<==🌹मैथिलि गजल🌹==>

मानवके बस्तिमे मानवताके ब्यपार लगैय
गुण,दोष बिसैर बनाउल व्यवहार लगैय

जोरगरहाके उच्च अवाज निर्धनके लगाम
बदलाब कहाँ अछी ?पुरनके बिचार लगैय

बाँन्दर सँ मानव जंगल सँ उठिऐलौं बस्तिमे
पुनः पंछी जेना नंगा होईत ई संसार लगैय

कतनो तरकि करै लोक दु भाग नै बिसरलै
पशुके गुण देखबैत मानव उघार लगैय

दोष हिंसा ई जलनके हवो सँ तेज गति अछी
मानव मानवता बिन तरकी बेकार लगैय

(सरल बार्णिक --१८)
राम सोगारथ यादव

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