कबिता

लगैये हुनका भैर देह आँच ।
सुनाबी जखने बात हम साँच ।।

जँ मिठे मरे त माहुर किए दी
टुटै ये मोन आइ बैन क काँच ।

जीवनके सफरमे छी विद्यार्थी
जीन्गी परिक्षाके दैत रहु जाँच

गरिबीके लात परे ने पेट प
मञ्चक आगा बैठ देखु नै नाँच

कर्म भरोसे बैसल छै रसिया
सुखल आइरमे लगौने छै चाँच

__✍दिनेश रसिया
लहान

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