चोट अछि करेजामे अथाह हमर
नै पुछु जीनगी कते तवाह हमर?
वरिषो वित गेल अहाँके नै देखल,
दर्शन लेल हिया काटै काह हमर॥
नै रहलहुँ घरेके आ नै तऽ घाटेके,
डुबि रहल य जीवनक' नाह हमर॥
कोइ कहैत अछि पागल हमरा तऽ,
कोइ दैत अछि उपमा बताह हमर॥
सदति हृदयक' खुट्टी सँ बान्हलहुँ,
कोन दोख आ कहु कि गुनाह हमर॥
जहिए सँ गेलियै मुह मोरिके 'राधा',
हेरा गेल सब खूशी-उत्साह हमर॥
© विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज,सप्तरी
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