कबिता

अरे बाप ! रे बाप ! ई गर्मी !!
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देह घा'म सँ एना नहायल,
जेना लागैया ई उसनायल।
जीब जंतु सबटा औनायल,
भैंसी खत्ता थाल लेटायल।
कनिको ने दै सुरज नरमी,
अरे बाप ! रे बाप ! ई गर्मी !!
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बेना डोला डोला सभ थाकलै,
प्राण सभक अपग्रह मे फंसलै।
हवा बसात ने कनिको सिहकै,
जईर रहल छै धरती दहकै।
ताप बढ़ल छै बङ बेसर्मी,
अरे बाप ! रे बाप ! ई गर्मी !!
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सरबत पियु वा कोका कोला,
रक्षा करथि सभक बंम भोला।
कोय AC कोय Cooler चलाबु,
सीतल सुख गाछ'तर पाबु।
बना खाऊ यौ साग ई करमी,
अरे बाप ! रे बाप ! ई गर्मी !!
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इन्द्र देब दौरु ! दुःख हेरु !
आब मे'घ मे बादल छोरु।
हवा पानि केँ दियौ फुहारा,
गरीब'सुबोध केँ इहे सहारा।
जीब जंतू बचै मानव धर्मी,
अरे बाप ! रे बाप ! ई गर्मी !!
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©सुबोध चौधरी।
हरिपुर ' गुरमाहा

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