कबिता


दुलार (बाल कविता)
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मैया कहथिन 'बौआ ' 'नूनू '
भैया कहथिन ' झात ' ।
कहथिन बाबी खिस्सा नित नव
दुपहर साँझ परात।।

कहथिन बाबा 'उठह बौआ !
आब भेल छह भोर '।
अङना ,बाड़ी-झाड़ी बूलथि
कयने सदिखन कोर ।।

जेठि बहिनि कपड़ा पहिराबथि
सब दिन क ' आवेश ।
ककबा ल ' थकड़थि हलुकेसँ
नाम लटुरिया केश ।।

बाबू कहथिन ' आबह बैसह,
खोलह आब किताब ।
सबसँ पहिने खाँत सुनाबह
जोड़ह खूब हिसाब ' ।।

बाल वयस, शिशु सभक दुलारू
पाबय सभक सिनेह ।
ताहीसँ बलगर नित होअय
जीवनमे मन - देह ।।

बाबा - बाबी ,बाबू , काका ,
माय , बहिनि आ भाय ।
देल दुलार जते, जीवन भरि
से की बिसरल जाय ।।

__✍Dr. Ramdeo Jha

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