कबिता


कतौ रहुँ अप्पन गाम नै बिसरू
स्वर्गो सँ सुन्नर ठाम नै बिसरू॥

कन्हा पर गमछा,माथ पर पाग
धोती-कुर्ता परिधान नै बिसरू॥

दश्मी,दियाबाती,बकर ईद,होरी
सङ्गमे पर- पकवान नै बिसरू॥

माछ-मखान त' खेबेटा करियौ,
दही,चुरा,चिन्नी,आम नै बिसरू॥

प्राती,सोहर,समदाउन,झिझिया
जन्म सँ मरणके गान नै बिसरू॥

मिथिलामे रह' वाला सब मैथिल,
जाति-पातिमे मिलान नै बिसरू॥

चाहे भोज हो या उत्सव कोनो,
खाय लेल अहाँ पान नै बिसरू॥

अप्पन सँस्कृति-अप्पन अस्तित्व,
जा जिबी कर' उत्थान नै बिसरू॥
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© विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज,सप्तरी
हाल-विराटनगर,मोरङ्ग

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