कबिता

चलु परदेशी जीनगी ओइपार छै
जीनगी के रस्ता आब तैयार छै
अधूरा सपना सँ सजल संसार छै
अपने मिथिला भुमि सँ प्यार छै
चलु परदेशी....

डेग-डेग पर आब दुश्मन तैयार छै
गली में चिचियाबैत मिथिलानि नार छै
ई अँधेरा काल के एक रूप छै
रौशनी में जगमगाती मिथिलानि नार छै
चलु परदेशी.....

के अपन जीनगी जि क' मैररहल छै
सब के अपने जीनगी सँ प्यार छै
ढोंगि सब लुटिरहल अपन देश छै
मिथिला वाशी सब देखि कs लाचार छै
चलु परदेशी...

बहुत जल्दबाजी में एतs सरकार छै
आगु आरो लुटाई के रस्ता तयार छै
कुछ मिथिला वाशी के मजबूरियाँ छै
नै त' मिथिला वाशीके हाथमें तलवार छै
चलु परदेशी...

✍अशोक कुमार सहनी
लहान ४ रघुनाथ पुर
हॉल - (दोहा क़तार )

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