कबिता

।। मैथिलि गजल  ।।

डुबलै  सुरज  जखन , चन्द्रमा  उगिऐ  जैतै
छनिके घडिक बात अछि, ऐहो कटिऐ जैतै

चारु ओर देखै छी जे, गुजगुज इ अन्हरियाँ
किछु  देरमे   प्रेमक  इजोत , पसरिऐ  जैतै

बँचु  यै  साँझक  गदगद अन्हरियाँसँ, धनि
कते  बेर  रहतै  कोह , भोरमे  फटिऐ  जैतै

मरुभुमिमे  गाछ  जेना , अहाँ मन बनालिय
धैर्यताक  बात  सभता , मनमे  सटिऐ  जैतै

ऐहे  दुवा  क'दिय  बाँचिजाय , देहक चमरी
चमरी  रहि जैतै   तँ , रौंइया  पलटिऐ  जैतै

_✍राम सोगारथ यादव
हॉल - (क़तार)

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