कबिता

।।   गजल   ।।

धनि  देखाबु   नै  ऐहन ,  मुस्कान
मनमे    उठैय    हमरा   ,   तुफान

ऐना  चलबैतँ  बुझतै  कि  लोक ?
अहाँक हेरायल अछि, कत ध्यान

अहाँ झाँपी नै किय साडिसँ, माथ
अहाँ  कटिदेबै  कि ? , हमर कान

मिथिलानी भ' करै छी जौं ऐना तँ
माटिमे  मिलि  छै  मैथिलके ,शान

मानी  जाउ   सभटा  हमर ,  बात
आब  देखाबु   नै  रुपक ,  गुमान

राम सोगारथ यादव

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