कबिता

‪#‎मैथिली_लप्रेक‬
"चुकड़ी"
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इ भेल एक सौ पचासी और आब बचल पंद्रह फेर पूरा दु सौ ।
-गे संतोला इ भोर सँ कोठली मे कि क' रहल छिहिन?
-भइया ! कहि दय छियो आब हमरा संतोला नञ कहल कर , हम आब चारिम किलास मे पढ़ेत छियै ।
-हँ हँ बड़ बुझलियो चारिम किलास मे , मुदा रहमे सब दिन संतोले जेँका गोल मटोल आर अखन की भरी जिनगी संतोला संतोला संतोला कहबो। हा हा हा!
-बाबु हौ ! देखय छहक भइया मुँह दुसे य'......!
-हे हे चुप चुप भगवती नञ कहबो संतोला , पहिने कह असगरे कि क' रहल छलहिन, किदैन कहादैन बड़बड़ा बड़बड़ा क'?
-भइया! ओ काल्हि राखी छलै न' हमरा लंग पूरा एक सौ पचासी टाका जमा भ' गेल मुदा पंद्रह गो अखनो बचल छैक दु सौ होइ मे।
-अस्तु ठीक मुदा ,करबिहिन की अतेक पाइ क' ?
-भइया ककरो कह बिहिन नञ नेँ! काज वाली दाय' लेल एगो ओढ़ना अनबै अहि बेर कार्तिक मेला सँ बड़ जाड़ होइत छइ जाड़क माह मे, ओ कतेक साल सँ एके गो धोकरा ओढ़ने रहैत छैक।
-एहन नीक काज ! सत्ते मे आब हमर संतोला बहिन पैग भ' गेलै चल हमरा लंग मे बहुते पैसा सब छइ तोरा दैत छियौ कहैत बलेसरा चुकड़ी क' ढेपा सँ थुकुची देलकै ।
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©‪#‎श्याम_झा‬

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