कबिता

अप्पन कहैत छलै जे ओहो आन भेलै आई
सटा रखने करेजमे ओहो बिरान भेलै आई

हमरे बुझैत छलै अप्पन संसार जे काल्हि
गेलै दोसर संग हमर जग सुनसान भेलै आई

मोती सँन हमर नोर केर बुझैत रहल पानि
हियाक बहुत कठोर हमर चाँन भेलै आई

करेजक कोनामे आशन छलै नित भोर साँझ
जाइते ओकरा सुन्न मनक दलान भेलै आई

की करब जग केर रिते बनल छै धोखा धढि
समहैर चलब हमरो बुद्धि जुआन भेलै आई

✍ अशरफ़ राईन

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