कबिता

कागज के टुकड़ा, लेल ललचैल, दुरस चलि ऐलौं,
कतय हैत सहोदर बहिन, कहियो नय ठेकनेलौ ।
अठन्नी-चौवन्नी दय, सबदीन राखी बनहेलौं,
करकड़ौआ नमड़ी जेबी में, बहिन लग नय गेलौं ।
पाबैन दिन, अभागल हम, अपन बहिन कनेलौं,
फेर अगिला साल, ई कहि अपन मन के बुझेलौं ।
बहिन तोरा हमरे सप्पत छौ, हम फेर ओझरेलौं,
कनिहें नय तु, हम मनक डोर गट्टा में लपटेलौं ।
स्नेह-शुत्र सँ पैघ कोन बन्हन.? सदैब बनहेलौं,
छिना-झपटी नय भेलै त की.? मधुर हमहु खेलौं ।
श्री मगन झा
समस्त देशवाशी के रक्षा-वंधन के बहुत रास शुभकामना.....जय मिथिला

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