कबिता

अकाबोन मनुखक आ मनुखे निपत्ता ,
केहन सृष्टि रचलौं हे अम्बे भवानी ।
मनुखे छै सोहरल मनुखेक खगता ,
केहन सृष्टि रचलौं हे अम्बे भवानी ।।

लपकै छै पछवा तै पर द्वेशक पसाही ।
ज्ञानक फसिल पर लागल छै लाही ।।
मार' सम्हार' के मैया तोरे छौ क्षमता,
केहन सृष्टि रचलौं हे अम्बे भवानी ।।

ओहि दिन त मरलै महिखाक देहेटा मैया ।
प्रमाणो भेटै छै नञि बस संदेहेटा मैया ।।
विचारेमे रभसय देखही न' नंगटा ,
केहन सृष्टि रचलौं हे अम्बे भवानी ।।

माय बेटाक नाता निमाही तोरासँ ।
बस स्नेहक बरखा चाही तोरासँ ।।
मैथिल प्रशान्त त' मागै छौ ममता,
केहन सृष्टि रचलौं हे अम्बे भवानी ।

~> ✍मैथिल प्रशान्त
दुर्गौली, बेनीपट्टी ।

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