कबिता

...............धिया ..............

✍👤मोहन भरद्वाज


गामें-गाम, शहर-शहर ।
सब ठाम लागल पसाही।।
अरोस-परोस, घर-घर।
सब ठाम लागल अगराही।।

बौआ-बुजुर्ग किशोर-किशोरी।
सब ठाम लागल आगि'क धाही।।
पत्रकार-कलाकार, कवि-कथाकार।
सब आब लागल कि न्याय चाही।।

धिया-भगवती, सिया पूजनिया छथि।
सब भाव लागल चूल्हा में देलौं डाही।।
दियाद-बाद, गोत्र-मूलक लत्ती।
सब जाबी लागल मचोड़ि पठौनौ उसराही।।

पुलिस-प्रशासन पक्छ-विपक्छ।
सब बाम भागल रूपैया'क चरवाही।।
नेता-पोटा, जनसेवक-नेटा।
सब ठामें लागल हमरा एनाही।।

धिया के मान , माने सिया के सम्मान।
सब आब करब त' भेटत वाह-वाही।।
भगवती के पूजा, स्त्री के अपमान।
सब आब करब त' अनेको "नैन्सी" जरत एनाही।।

जागू मैथिल,
जगाबू मैथिल।

#हमर_रचना

जय मिथिला,
जय मैथिली।

#justice4nancy

©मोहन भारद्वाज
     02/06/2017
मोहन भरद्वाज

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