मानवता खातीर मरैत चली 'हम आ अहाँ
✍👤विद्यानन्द वेदर्दी
प्रेम पसारि,दु:ख हरैत चली 'हम आ अहाँ'
सागर जीनगीक तरैत चली 'हम आ अहाँ'॥
सृष्टीमे केहनो कारी भयाओन राति आबे,
भगजोगनी बनि बरैत चली 'हम आ अहाँ'॥
कोरामे बान्हिकऽ एक-एकटा लएल साँस,
एकआनके नाम करैत चली 'हम आ अहाँ'॥
लोक एत' छै धर्म आ धनक पघि पूजारी,
मानवता खातीर मरैत चली 'हम आ अहाँ'॥
'दू दिन' ई जानि नइँ कखन बिति जाएत?
पियारक बाधमे चरैत चली 'हम आ अहाँ'॥
_____________________________
✍👤 विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज,सप्तरी
हाल: ललितपुर,काठमाण्डौँ
✍👤विद्यानन्द वेदर्दी
प्रेम पसारि,दु:ख हरैत चली 'हम आ अहाँ'
सागर जीनगीक तरैत चली 'हम आ अहाँ'॥
सृष्टीमे केहनो कारी भयाओन राति आबे,
भगजोगनी बनि बरैत चली 'हम आ अहाँ'॥
कोरामे बान्हिकऽ एक-एकटा लएल साँस,
एकआनके नाम करैत चली 'हम आ अहाँ'॥
लोक एत' छै धर्म आ धनक पघि पूजारी,
मानवता खातीर मरैत चली 'हम आ अहाँ'॥
'दू दिन' ई जानि नइँ कखन बिति जाएत?
पियारक बाधमे चरैत चली 'हम आ अहाँ'॥
_____________________________
✍👤 विद्यानन्द वेदर्दी
राजविराज,सप्तरी
हाल: ललितपुर,काठमाण्डौँ
![]() |
कवि- विद्यानन्द वेदर्दी जी |
0 टिप्पणियाँ Blogger 0 Facebook