कबिता


।(((((((  बिहीन कथा   ))))))))

रमजान में अस्वाशन 


✍👤अशरफ़ राईन
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क़तारक समय राति 12 बजे । जखन गहिर नीन्द मे सुतल छलौ । तखने मोबाइल मे घंटी बजलै ट्रिंग ,ट्रिंग, ट्रिंग ।अझके नीन टूटल ।फोन उठेलौ । हेल्लो , अस्सलाम अलैकुम ,। जवाब देलौं वालेकुम अस्सलाम। ह शब्बो की बात एतेक राति के किया फोन केलौ । सब नीक अछि ने ? बहुत मलिन आ भाबुक स्वर में बजली । अहु बेर रमजान मे घर नै एबै । बहुते आहाँक कमी महसूस होइत अछि।  आहाँ बिनु कोनो सोहान नाइ रहै छै हमर रमजान के  । संगे ईद मनौला सेहो बेसी दिन भ गेल  ।

हम अबाक रहि गेलौ , अनियोल में पड़ि गेलौ ,कोन उत्तर दियै हुनक प्रश्न के ? हमरा लग जवाब नै छल ।कोन दिलासा दियै ,अगिला साल सेहो इहे आश्वाशन देने रहियै ,जे अगिला रमजान में घर आएब । 

तैयो अपन सटीक शब्द में समझाब के कोसिस केलौ।
केकर मन नै रहैत हेतै जे पर्व में अपन घर परिवार संग रही । मुदा ओ सब मजबूर अछि । चाहियो क नै आबि सकै छै । मनक इकछा मनेमे घुइट क मैंर जाइ छै ।
की करु शब्बो , ई प्रवासी जिनगी अपन नै रहि जाइ छै। जखने अपन देश सँ प्रस्थान करै छै प्रवास लेल तखने ई जिनगी  दोसर के गुलाम भ जाइ छै । अपन मर्जी सँ किछ नै क सकै छी । छुट्टी लेल त कहने छलियै मोदिर (मालिक ) के मुदा ओ अस्वीकार क देलक ।बहुत कोसिस केलौ तैयो नै भ सकल । ई बात सुनि ओ आरो उदास भ गेलनि जेना हमरा हुनक आवाज सँ बुझा रहल छल ।फेर पछिले साल जेना अहु बेर ओहे अस्वाशन द फोन काटि देलौं । 

फोन कटलाक बाद मन मे अनेको प्रकार के प्रश्न सब खेलैत रहल । की ई जिनगी बस अस्वाशन दति दति बित जेतै । हरेक बर्ष केर पर्व हमर ई प्रवास में  आ घर परिवार के  उदासिये में बिततै। टाका लेल परिवार संगहक खुसी अहिना ब्यर्थ होइत जाएत । एहने एहने प्रश्न सब दिमाग मे खेलैत । तखन सँ नीन सेहो हेरागेल आ जगले कखन भोर भेल सेहो पता नै ।

✍ अशरफ राईन 
सिनुरजोड़ा , धनुषा ** हाल :- दोहा ,क़तार


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